अतः न्यायालय का अवमान अधिनियम का अपराध 211 के अन्तर्गत भी अपराध है।
2.
320 पटना) में कहा है कि एक न्यायाधीश जिसमें वह अध्यक्ष पीठासीन है उस न्यायालय का अवमान कर सकता है।
3.
-ऐसी सूचना, जिसे किसी न्यायालय या अधिकरण द्वारा प्रकाशित करने के लिए स्पष्ट रुप से मना कर दिया गया है या ऐसी किसी बात का प्रकटीकरण जिससे न्यायालय का अवमान हो सकता हो ।
4.
नि: संदेह, न्यायालय अवमान अधिनियम, १ ९ ७ १ की धारा २ (ग) में यह उल्लेख किया गया है कि ऐसा कोई कार्य, जो किसी न्यायालय के प्राधिकार को कलंकित करता है या कलंकित करने के लिये प्रवृत्त है या कम करता है या कम करने के लिये प्रवृत्त है, न्यायालय का अवमान है ।
5.
वे सुरक्षित हैं, न्यायिक कार्य कोई पवित्र वस्तु नहीं है इसे समीक्षा का सामना करना चाहिए और यहां तक कि आम आदमी के बड़बोली टिप्पणियों को भी न्यायाधीश और न्यायालय समान रूप से आलोचना के लिए खुले हैं और यदि कोई तर्कसंगत बहस या प्रक्षेपण किसी न्यायिक कार्य के विरूद्ध प्रस्तुत किया जाता है कि यह विधि या जनहित विरूद्ध है तो कोई भी न्यायालय इसे न्यायालय का अवमान नहीं मान सकेगा।